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कड़वा सच, तीखी ज़ुबान बेगम जान ( स्टार 3 /5 )

 
 
       भारत पाकितान बंटवारे में कइयों की जान गई दोनों देश अलग तो हो गए, दोनों देशो के बिच एक लकीर तो खींच दी गई पर इन सब के बिच किन किन ने क्या क्या खोया, और किन किन तकलीफों का सामना करना पड़ा, यही दर्शाने की एक कोशीश की है निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी फिल्म 'बेगम जान' में, यह फिल्म  बंगाली  फिल्म 'राजकाहिनी' का हिंदी रीमेक है। 
 
फिल्म      :   बेगम जान
श्रेणी        :   पीरियड ड्रामा
निर्देशक  :   श्रीजीत मुखर्जी
कास्ट     : विद्या बालन , इला अरुण, गौहर खान ,पल्लवी शारदा, सुमित निझावन,नसीरुद्दीन शाह,
राजेश शर्मा, विवेक मुश्रान, चंकी पांडे
निर्माता  : विशेष फिल्म्स
संगीत    : अनु मलिक, खय्याम
स्टार      : 3/5
     बात करते हैं कहानी की तो कहानी उस वक़्त की है जब भारत देश आज़ाद हुआ और भारत - पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा खींची जा रही थी, और यही लाइन  ल एक बेगम जान (विद्या बालन) के वेश्यालय के बीचोंबीच गुजरती और दोनों मुल्क के आला अधिकारी बेगम जान से वेश्यालय छोड़कर जाने की आदेश  देते हैं। लेकिन बेगम जान इस आदेश का पालन बिल्कुल नहीं करना चाहती। यही से शुरू होता है बेगम जान का संघर्ष जहाँ बेगम जान पर श्याम दाम दंड का प्रयोग  अधिकारियों  द्वारा किया जाता आपको बता दे की बेगम जान के साथ  खोटे  में करीब 10 और महिलाएं,  2 पुरुष भी रहते हैं। आपको बता दे की फिल्म बंटवारे के वक़्त सीमा रेखा की जरूर हैं , पर फिल्म के पहले सीन में आपको २०१६ नज़र आता हैं , और साथ ही याद आएंगे वह दर्दनाक हादसा जो दिल्ली में घटा था, निर्भया | 
 
बात करते हैं  निर्देशन की फिल्म का निर्देशन और भी अच्छा हो सकता था, इंटरवल के पहले कुछ एक अदा  सीन छोड़ कर बोर करती , जैसी कहानी है, उस हिसाब से स्क्रीनप्ले को सुधारने की आवश्यकता थी, कुछ सीन भी काफी लम्बे लम्बे नज़र आये, जिसकी शायद इतनी जरुरत नहीं थी, एडिटिंग  भी ठीक तरह से नहीं की थी, जिस तरह फिल्म का प्रोमो नज़र आया वैसी फिल्म नहीं कमाल का हैं तो सिनेमैटोग्राफी, ड्रोन कैमरे से लिए हुए शॉट्स, डायलॉग्स | 
 
अभिनय की बात करते हैं, फिल्म की कास्टिंग कमाल की हैं  बेगम जान विद्या बालन से लेकर विवेक मुश्रान, चंकी पांडे, राजेश शर्मा, रजित कपूर, आशीष विद्यार्थी, पल्लवी शारदा, इला अरुण सभी ने अपने किरदार में जान फुक डाली खासतौर पर पितोबाश त्रिपाठी और गौहर खान ने कमाल का अभिनय  किया, साथ ही नसीरुद्दीन शाह का छोटा, लेकिन अच्छा रोल है |   वही आपको अमिताभ बच्चन की आवाज सूत्रधार के रूप में आपको सुनाई देगी।
 
बात करते हैं संगीत की ठीक ही हैं , एक दो गाने है, जो कहानी के साथ चलते हैं , कुछ ऐसे गाने भी हैं  जो कहानी  खलल डालते  नज़र आ रहे थे एक फोक गाना है, बाबुल मोरा निहार सुनने में अच्छा लगा | 
 
फिल्म इंटरवल के बाद खासकर फिल्म का आखरी हिस्सा जिसे क्लामेक्स कहते हैं  वह कमाल का नज़र आया | फिल्म एक बार देखि जा सकती हैं | 
 
पुष्कर ओझा